धर्मेश्वर महादेव
धर्मनगरी काशी को शिव नगरी कहा जाता है. यहां पर पग-पग में भगवान विराजते हैं. यहां पर बाबा काशी विश्वनाथ का प्राचीन मंदिर भी है.
इसके अलावा भी यहां मीर घाट के ऊपर बना हुआ धर्मेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है. मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के साथ यमराज विराजते हैं.
वहीं इस मंदिर के साथ एक धर्मकूप (कुआं) भी मौजूद है, जिसके बारे में भी कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि इसे सूर्यपुत्र यम ने बनवाया था. वहीं इस यूपी के इस कूप (कुआं) के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसमें अगर किसी व्यक्ति की परछाई इसमें नहीं दिखे तो उसकी मृत्यु तय है.
शिव जी ने दी यमराज को जिम्मेदारी :-
भगवान शिव ने यम का नामकरण इसी जगह किया था. ऐसी लोककथा प्रचलित है जिसके अनुसार भगवान शिव पृथ्वी पर मरने वाले मनुष्य को स्वर्ग और नर्क में जाने को लेकर चिंतित थे. वहीं दूसरी तरफ यम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए काशी में तपस्या की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. फिर भगवान विष्णु ने उन्हें कुंड बनाकर उसमें स्नान के पश्चात 16 चौकड़ी आराधना करने को कहा, जिसके बाद यमराज ने इसी अनुसार तप किया और भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए. उन्होंने यहीं पर उनका नाम यमराज रखा और उन्हें मोक्ष पाने वालों का हिसाब रखने की जिम्मेदारी भी सौंपी.
काशी के इस कुएं में नहीं दिखी परछांई तो मौत तय :-
शिव यानी मोक्ष और मोक्ष का अर्थ होता है शिव, स्पष्ट है शिव द्वारा बनायीं गयी इस नगरी में मनुष्य सहित देवता और देवियों ने भी अपने जीवन कामने के लिए तप, पूजा और दर्शन किया। शास्त्रों में साफ तौर पर अंकित है कि काशी में सभी देवी देवता, यम यामिनियां, यक्ष और यक्षीयों ने भगवान शिव कि पूजा कि और अपना नाम प्रदान करने का शिव से निवेदन भी किया।
इसी काशी में बाबा विश्वनाथ के दक्षिणी भाग में स्थित धर्मेश्वर महादेव का मंदिर, जहां स्थापित धर्मकूप से एक अनूठी किवदंति जुड़ी हुई है। कहां जाता है इस कुएं में लोगों की परछाई कैद होती है और छः महीनों तक दिखाई देती है। जिसकी परछाई दिखाई नहीं देती उसकी मृत्यु निश्चित होती है। इस कुएं की स्थापना स्वयं मृत्यु के स्वामी यमराज ने की थी।
शिव की नगरी काशी में अति प्राचीन धर्मेश्वर महादेव का मंदिर मीरघाट की तंग गलियों में स्थित है। गली में विशालाक्षी माता के मंदिर से करीब पांच कदम आगे बढ़ते ही बांये हाथ धम्रेश्वर महादेव का मंदिर है। इस मंदिर प्रांगण में धर्मेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जबकि मंदिर के पाश्र्व भाग में धर्मकूप विद्यमान है। इस धर्मकूप का निर्माण यमराज ने कराया था। करीब चालीस फुट गहरे इस कुएं के बारे में यह माना जाता है कि जो इसमें झांकता है उसकी परछाई कैद हो जाती है और यह छह माह तक दिखायी देती है। परछाई का दिखना शुभ माना जाता है क्योंकि यह कूप आने वाली विपत्तियों की ओर भी इंगित करता है। अगर इसमें परछाई नहीं दिखी तो छह माह के भीतर जीवन पर संकट आने का सूचक माना जाता है। यह संकट मृत्यु रूपी भी हो सकता है।
कहते हैं पांडव, युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की कृपा से यहां आये और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति और जीत के प्रति आश्वस्त हुए, साथ ही द्रौपदी को अक्षय सुहाग का वरदान भी यही से प्राप्त हुआ। धम्रेश्वर महादेव मंदिर और कुएं के बारे में काशी खण्ड और स्कंद पुराण में भी वर्णित है। मंदिर के पुजारी पं. मनोज उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में यमराज को सूर्यपुत्र माना जाता है। सूर्यपुत्र यम से यमराज बने और काशी आने के बाद धर्मराज माने गये। धम्रेश्वर महादेव के रूप में यमराज विराजमान हैं। मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है और इनकी उत्पत्ति गोपाष्टमी को मानी जाती है।
अतिप्राचीन इस मंदिर में धम्रेश्वर महादेव के दर्शन का मुख्य समय ब्रह्ममुहुर्त है। इस समयावधि में आराध्य के दिव्य स्वरूप का दर्शन होता है। इनके दर्शन मात्र से 10 हजार गायत्री जप या सहस्रजप का फल मिलता है। मान्यताएं यह भी हैं की धर्मेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से व्यक्ति को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है।
इसके साथ ही इस कूएं में किए गये तर्पण व कर्मकाण्ड का फल गया के फाल्गुनी नदी में किये गये पूजा-पाठ के समान मिलता है। धर्मकूप के पास गणोश-लक्ष्मी का विग्रह स्थापित है। इसके पश्चिम दिशा की ओर विश्वभुजा माता मंदिर है। कुंए के दांयी ओर वट सावित्री हैं। सभी विग्रहों के गोल घेरे में धर्मकूप है।
🚩 हर हर महादेव शम्भू काशी विश्वनाथ गंगे 🚩
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