त्रिपुरा भैरवी मन्दिर
इस घाट पर त्रिपुरेश्वर शिव और रुद्रेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित है इसीलिए इस घाट को "त्रिपुरा भैरवी" घाट के नाम से जाना जाता है। यह घाट दशाश्वमेध घाट के उत्तर में स्थित है। इस घाट को पहले वृद्धादित्य घाट के नाम से जाना जाता था। काशी खंड में भी इस घाट का वर्णन है। इस घाट पर दुर्गा जी का मंदिर स्थित है जो त्रिपुरा भैरवी के नाम से प्रसिद्ध है। भक्त दयानन्द गिरि ने इस घाट का जीर्णोद्धार कराने के साथ ही मठ का भी निर्माण कराया था। घाट पर पीपल वृक्ष के समीप पंचायतन शैली में बीच में शिवलिंग व चारों ओर शक्ति, सूर्य, गणेश और विष्णु की मूर्तियाँ स्थित हैं। यह घाट तमिल और तेलुगू यात्रियों के लिए एक प्रसिद्ध स्थल है। वर्ष 1958 में उतर प्रदेश सरकार ने घाट को पक्का कराया।
काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : शिव की नगरी में भैरवी को समर्पित गंगा घाट-
गंगा की हिमालय से लेकर गंगा सागर तक की अनुपम छवि में गंगा घाटों की जो कहानियां और परंपराएं जीवंत हैं वह युगों से कही सुनी और गुनी जाती रही हैं। यह सौभाग्य उनका भी है जो गंगा के तट पर संस्कृतियों की समृद्ध परंपराओं में जी रहे हैं और उसको आत्मसात करते हुए आगे आने वाली पीढि़यों को भी देने की कामना और मंशा रखते हैं।
काशी के चौरासी प्रमुख घाटों की मान्यता भी कुछ ऐसी ही है जहां हिंदू धर्म संस्कृति संस्कार के साथ दूसरे धर्मो को भी स्थान मिला है। मगर मान्यता सर्वाधिक बाबा भोले की नगरी में शिव को ही है। गंगा शिव की जटाओं में हैं तो घाटों पर भी शिव और उनसे जुड़े पात्रों को भी घाटों की परंपराएं यहां जीवंत हैं। उन्हीं में सर्व प्रमुख है त्रिपुरा भैरवी घाट जो घाट मे प्रवेश करने वाले मार्ग में स्थित प्राचीन त्रिपुरा भैरवी के नाम पर स्थापित दुर्गा जी के मंदिर के तौर पर सर्व मान्य है।
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि आस्थावानों ने इस प्राचीन मंदिर का 18 शताब्दी में मंदिर का पुन: निर्माण कराते हुए घाट को पक्का स्वरूप दिया। चूंकि कई लोगों के सहयोग से यह कार्य हुआ लिहाजा श्रेय किसी एक को नहीं जाता। इतिहासकार मानते हैं कि गीर्वाणपदमंजरी के अनुसार घाट को पहले वृद्धादित्य के तौर पर मान्यता थी मगर त्रिपुरेश्वर शिव व रूद्रेश्वर महादेव के कारण ही त्रिपुरा भैरवी का नाम कालांतर में घाट का स्थाई हो गया जो आज भी इसी के तौर पर अपनी पहचान रखता है।
घाट स्थित पीपल वृक्ष के पास शिवलिंग व चारो दिशाओं में शक्ति, सूर्य, गणेश और विष्णु की मूर्तिया स्थापित हैं। जबकि अन्य मंदिर में भगवान आदित्य के तौर पर सूर्यदेव की स्थापना है। स्थानीय नागरिक बताते हैं कि बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में आस्थावान दयानन्द गिरि की ओर से घाट का जीर्णोद्धार कराने के साथ मठ का भी निर्माण कराया गया। घाट पर हिंदू धर्म संस्कार और रीति रिवाज की मान्यता है साथ ही चैत्र व शारदीय नवरात्रि में आस्थावानों का अधिक जमावड़ा घाट पर होता है। गंगा और उससे जुडे़ कार्तिक माह के विविध आयोजन भी घाट की विशेषता हैं।
वाराणसी की विशिष्ट शैली की सकरी गलियों में मां त्रिपुरा भैरवी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर के पास से गुजरने वालों के सिर मां के समक्ष अपने आप झुक जाते हैं। माना जाता है कि मां त्रिपुर भैरवी के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं। मां का ऐसा महात्म्य है कि इनके आस-पास का पूरा मोहल्ला त्रिपुर भैरवी के नाम से जाना जाता है।
त्रिपुरा भैरवी माता
माँ त्रिपुर भैरवी का स्थान 10 महाविद्या में 5 वें नंबर का है। कहा जाता है कि मां की अद्भुत प्रतिमा स्वयं भू है। इनके भक्तों को सहज रूप से विद्या प्राप्त होती है। मान्यता के अनुसार मां अपने भक्तों को विद्या के साथ सुख-सम्पत्ति भी प्रदान करती हैं। छोटे से इस मंदिर में मुख्य द्वार के सामने मां की बेहद भावपूर्ण मुद्रा की प्रतिमा स्थापित है जो कि गली से दिखाई देती है। मंदिर परिसर में ही एक तरफ त्रिपुरेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है।
मंदिर में बड़ा कार्यक्रम कार्तिक मास में अनन्त चतुर्दशी को मां का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान मां का भव्य वार्षिक श्रृंगार भी किया जाता है। मां का श्रृंगार बेहद आकर्षक ढंग से किया जाता है। वहीं वर्ष में पड़ने वाले दोनों नवरात्र में मां का नौ दिन अलग-अलग ढंग से श्रृंगार किया जाता है। नवरात्र में मां के दर्शन के लिए दर्शनार्थियों की काफी संख्या बढ़ जाती है। जबकि सप्ताह में मंगलवार एवं शुक्रवार को भी मां के दरबार में दर्शनार्थी मत्था टेकते हैं। यह मंदिर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। सुबह की आरती 9 बजे एवं रात की शयन आरती 10 बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है। वर्तमान में मंदिर के पुजारी पंडित ओमप्रकाश शास्त्री हैं। कैन्ट स्टेशन से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर तक पहुचने के लिए गोदौलिया आटो द्वारा पहुंचकर पैदल गलियो में पहुंचा जा सकता है। वहीं इस मंदिर तक मीर घाट होते हुए भी पहुंचा जा सकता है।
🌺 जै माँ जगत जननी जगदम्बा 🌺
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