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कलियुग के जागृत देवता काल भैरव
काशी में बाबा विश्वनाथ के बाद यदि किसी का महत्व है, तो वे हैं काशी के कोतवाल काल भैरव। बनारस के लोगों की मान्यता है कि काशी विश्वेश्वर के इस शहर में रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत जरूरी है क्योंकि दैवीय विधान के अनुसार वे इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। श्रद्धालुओं में काशी के काल भैरव मंदिर विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद जो भक्त इनके दर्शन नहीं करता है, उसको पूजा का पूरा फल नहीं मिलता।
काल भैरव को तंत्र का प्रमुख देवता माना जाता है। भगवान शंकर के अवतारों में काल भैरव का विशिष्ट महत्व है। शिव पुराण में काल भैरव का देवाधिदेव महादेव शिवशंकर के अंशावतार रूप में विस्तृत वर्णन मिलता है। तंत्राचार्यों की मान्यता है कि जिस प्रकार अपौरुषेय वेदों में आदि पुरुष का चित्रण रुद्र रूप में किया गया है; तंत्र शास्त्र में वही मान्यता काल भैरव की है। तंत्र साधक इन्हें कलियुग का जागृत देवता मानते हैं। शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को प्रदोष काल में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस तिथि को भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है।
तंत्रशास्त्र के विशेषज्ञ भैरव की उत्पत्ति शिव के रुधिर से हुई मानते हैं। शिवपुराण में वर्णित कथानक के मुताबिक अनुसार एक बार आदि योगी महादेव शिव ध्यान समाधि में लीन थे। उसी वक्त शक्तिमद के अहंकार में चूर महादैत्य आक्रमण कर उनकी समाधि तोड़ दी। ध्यान में इस अप्रत्याशित व्यवधान से भगवान शिव का क्रोध भड़क उठा और उनकी क्रोधाग्नि उत्पन्न काल भैरव ने तत्क्षण अंधकासुर का अंत कर डाला। वहीं स्कंदपुराण के काशी-खंड में कथानक है कि एक बार काशी में आयोजित धर्मसभा में सभी देवों व ऋषि मुनियों द्वारा सर्वसम्मति से महादेव की सर्वोच्चता स्वीकार करने से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने रुष्ट होकर शिव तथा उनके गणों को अपमानजनक वचन कहे।
इस पर भगवान शिव व महाकाली के शरीर से निकले तेजपुंज ने आपस में समाहित होकर प्रचंड काया का रूप धारण कर लिया। उस महाकाय आकृति को अपने पर आक्रमण को उद्यत देख ब्रह्मा जी अत्यंत भयभीत हो उठे। तब शिव ने मध्यस्थता कर किसी तरह उसको शांत कर ब्रह्मा जी को भयमुक्त किया। तब जाकर वह विकराल रूप वाला शिव अंश शांत हुआ और काल भैरव के नाम से लोक विख्यात हुआ। तदनंतर, भगवान शिव ने उसे काशी का द्वारपाल नियुक्त कर दिया।
काशी में बाबा विश्वनाथ के बाद यदि किसी का महत्व है, तो वे हैं काशी के कोतवाल काल भैरव। बनारस के लोगों की मान्यता है कि काशी विश्वेश्वर के इस शहर में रहने के लिए बाबा काल भैरव की इजाजत जरूरी है क्योंकि दैवीय विधान के अनुसार वे इस शहर के प्रशासनिक अधिकारी हैं। श्रद्धालुओं में काशी के काल भैरव मंदिर विशेष मान्यता है। कहा जाता है कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन के बाद जो भक्त इनके दर्शन नहीं करता है, उसको पूजा का पूरा फल नहीं मिलता।
काशी के कालभैरव की आठ चौकियां हैं- भीषण भैरव, संहार भैरव, उन्मत्त भैरव, क्रोधी भैरव, कपाल भैरव, असितंग भैरव, चंड भैरव और रौरव भैरव।
काशी की ही तरह महाकाल की नगरी उज्जैन में भी एक ऐसा मंदिर है जहां काल भैरव स्वयं अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हैं। यहां हर दिन भगवान काल भैरव भक्तों की मदिरा रूपी बुराई को निगल लेते हैं और उनके हर कष्ट को सहज ही दूर कर देते हैं। ज्ञात हो कि काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है।
मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को एक तश्तरी में उड़ेल कर भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते -देखते ही भक्तों की आंखों के सामने जो घटता है वह चमत्कार जिसे देखकर भी यकीन करना एक बार को मुश्किल हो जाता है। बाबा काल भैरव के इस धाम एक और बड़ी दिलचस्प चीज है जो भक्तों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेती है और वह है मंदिर परिसर में मौजूद ये दीपस्तंभ। श्रद्धालुओं द्वारा दीपस्तंभ की इन दीपमालिकाओं को प्रज्ज्वलित करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
नाथ सम्प्रदाय में काल भैरव की पूजा की विशेष महत्ता है। इस पंथ के अनुयायी मानते हैं कि भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी होती है। श्री तत्वनिधि नाम तंत्र शास्त्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों में उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप का तत्वज्ञान वर्णित है। इसी तरह भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है। भैरव के सौम्य स्वरूप बटुक भैरव व आनंद भैरव कहते हैं।
उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी मानी जाती है। तंत्र शास्त्र अनुसार शनि और राहु की बाधाओं से मुक्ति के लिए भैरव की पूजा अचूक होती है।
कहा जाता है कि काल भैरव की पूजा से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि काली शक्तियों का भय नहीं रहता। जन विश्वास है कि इनकी आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है। बताते चलें कि इन दिनों तंत्र शास्त्र में भैरव की कृपा पाने के लिए वाममार्गी कापालिक क्रियाओं का प्रयोग प्रचलन में अधिक है। मगर शास्त्रों में इस पद्धति का निषेध तथा भैरव की सौम्य उपासना पर बल दिया गया है।
भैरव का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।
भैरव साधकों को कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं चाहिए बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं। सात्विक आराधना करें। भैरव साधना में अपवित्रता वर्जित मानी गई है।
भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला।
ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव भगवान शिव के गण और माता पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है।
उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई। बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव।
मुख्यतः दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव। पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है।
भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है। नाथ संप्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है।
भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है।
उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़ कर दंड के लिए प्रस्तुत करना।
जैसे कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है। उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है।
काशी के कोतवाल हैं बाबा काल भैरव
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बनारस, उत्तर प्रदेश में एक पुलिस स्टेशन ऐसा भी है कि जहां थानेदार की कुर्सी पर आज तक किसी अधिकारी ने बैठने की हिम्मत नहीं जुटाई। जी हां, वाराणसी के एक थाने में थानेदार की कुर्सी पर बाबा काल भैरव अपना आसन पिछले कई सालों से जमाए हुए हैं। अफसर बगल में कुर्सी लगाकर बैठते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि सालों से इस स्टेशन के IAS, IPS नहीं आया।
तो इसलिए अपनी कुर्सी पर नहीं बैठते थानेदार
वाराणसी के विश्वेश्वरगंज स्थित कोतवाली पुलिस स्टेशन के प्रभारी का कहना है कि ये परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है। यहां कोई भी थानेदार जब तैनाती में आया तो वो अपनी कुर्सी पर नहीं बैठा। कोतवाल की कुर्सी पर हमेशा काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव विराजते हैं। लोगों का मानना है कि आने-जाने वालों पर बाबा खुद नजर बनाए रखने के कारण भैरव बाबा को वहां का कोतवाल भी कहा जाता है। बाबा की इतनी मान्यता है कि पुलिस भी बाबा की पूजा करने से पहले कोई काम शुरु नही करती।
पूरी काशी नगरी का लेखा-जोखा बाबा के पास
माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ ने पूरी काशी नगरी का लेखा-जोखा का जिम्मा काल भैरव बाबा को सौंप रखा है। यहां तक कि बाबा की इजाजत के बिना कोई भी व्यक्ति शहर में प्रवेश नहीं कर सकता है।
पिछले 18 सालों से तैनात एक कॉन्स्टेबल का कहना है कि मैंने अभी तक किसी भी थानेदार को अपनी कुर्सी पर बैठते नहीं देखा। बगल में कुर्सी लगाकर ही प्रभारी निरीक्षक बैठता है। हालांकि, इस परंपरा की शुरुआत कब और किसने की, ये कोई नहीं जानता। लोगों का ऐसा मानना है कि यह परंपरा कई सालों पुरानी ही है।
बाबा की मान्यता
माना जाता है कि साल 1715 में बाजीराव पेशवा ने काल भैरव मंदिर बनवाया था। यहां आने वाला हर बड़ा प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी सबसे पहले बाबा के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेता है। बता दें कि काल भैरव मंदिर में हर दिन 4 बार आरती होती है। जिसमें रात के समय होने वाली आरती सबसे प्रमुख होती हैं। आरती से पहले बाबा को स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। खास बात यह है कि आरती के समय पुजारी के अलावा मंदिर के अंदर किसी को जाने की इजाजत नहीं होती। बाबा को सरसों का तेल चढ़ता है। साथ ही एक अखंड दीप बाबा के पास हमेशा जलता रहता है।
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