रत्नेश्वर महादेव मणिकर्णिका घाट
रत्नेश्वर महादेव मणिकर्णिका घाट के समीप स्थित है। यह एक झुका हुआ / टेढ़ा मन्दिर है। आस पास के पुरोहितों के हिसाब से यह मंदिर 15वीं शताब्दी में बना था। यह मंदिर ज्यादातर गंगा जी में डूबा ही रहता है और पूजा पाठ भी कम होती है। सोशल मीडिया पर अक्सर इसे काशी करवत की संज्ञा दे दी जाती है लेकिन इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव है।
-इस मंदिर के टेढ़े होने की कई मान्यताएं सामने आती हैं जिनमें से इन दो की मान्यताएं ज्यादा हैं।
अहिल्याबाई का शाप :-
इस मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई के दासी रत्ना ने कराया था। जिस समय अहिल्याबाई काशी में मंदिरों का निर्माण करा रही थीं उस समय उनकी दासी ने भी एक मंदिर बनवाने की इच्छा जताई थी और अहिल्याबाई से ही पैसे उधार लेकर इस मंदिर को बनवाया था। अहिल्याबाई ने जब इस मंदिर को देखा तो वो बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने कहा कि वो इसे अहिल्याबाई का नाम दे दे लेकिन उनकी दासी ने इसका नाम अपने नाम पर रत्नेश्वर महादेव रखा। इस से क्रोधित होकर अहिल्याबाई ने शाप दिया कि इस मंदिर में पूजापाठ नहीं होगी। इसके बाद ही मंदिर टेढ़ा हो गया और पूजा पाठ भी यहाँ कम ही होता है।
माँ का कर्ज :-
कुछ मान्यताओं के हिसाब से इस मंदिर का निर्माण राजा मान सिंह के सेवक ने अपनी माँ रत्नाबाई के नाम पर कराया था। वह अपनी माँ के दूध का कर्ज उतारना चाहता था इसलिए उसने शिवमंदिर की स्थापना कराई थी। बेटा माँ का कर्ज उतारना चाहता है यह जानकर उनकी माँ की भावनाओं को धक्का लगा। मन्दिर बनने के बाद जब बेटे ने माँ से दर्शन करने को कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि दर्शन कैसे करूँ, अभी मन्दिर पूरा हुआ ही कहाँ है। बेटे ने जैसे ही पलट कर देखा मन्दिर एक तरफ से धंसी हुई थी। इसीलिए कहा जाता है कि माँ का कर्ज कभी उतारा नहीं जा सकता।
कुछ रोचक तथ्य :-
पीसा की मीनार केवल 5 डिग्री झुकी हुई है और वह विश्व विरासत स्मारक हैं और वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के पास यह रत्नेश्वर मंदिर 9 डिग्री झुका हुआ है लेकिन एक पर्यटक स्थल के रूप में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है...
पीसा की मीनार 54 मीटर ऊंचा है,जबकि यह मंदिर 74 मीटर ऊँचा है, पिसा की मीनार जमीन में है, लेकिन भारतीय मंदिर जल में । जल में किसी दीवार का पंद्रह दिन टिक पाना मुश्किल होता है, लेकिन भारतीय मंदिर 500 सालों से अडिग है।
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